मेरे हर कविता का लफ्ज़ जिंदगी से ही आया है,जिंदगी को बहोत ही करीब से देखा है मैंने और एक सत्य की प्राप्ति हुवी है ऐसा लगता है और जब सत्य मिल जाता है तो उसका नहीं रहता,वो सबका हो जाता है,किसी ग्रंथ या कविता से होकर बहने लगता है,मै यहांपर कोई कविता लिख नहीं सकता,उतनी मेरी हैसियत नहीं के जिंदगी पर कुछ लिखकर उसे शब्दों में सिकुड दू ,पर हाँ कोशिश जरुर की है उसके अनगिनत रंगों में से कुछ रंग आपके नजर करने की ..साजिद शेख (sajid1111@gmail.com )
Wednesday, June 16, 2010
अकेलापन...
अकेले होने का दर्द
बहोत ही होता है
कोई रौशनी ..कोई आशा नजर नहीं आती ..
विचार और भावनाओं की बढ़ जाती है कशमकश...
और धीरे धीरे व्यक्तित्व सिकुड़ने लग जाता है
हलके हलके फिर ये
दिल-ओ-दिमाग का तूफाँ
भर के आता है आँखों में
बादलों की तरह ...
और बरसने के लिए हो जाता है मजबूर ...
लेकिन एक बात है जरुर
ये अनोखा बहाव
दे जाता है मुझे एक नयी पहचान
और मेरी आँखों से छलके हुवे
मेरे आंसुओं के हर बूंद से
मेरे व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब
मुझसे मुस्कुराकर कहता है के
तुम अकेले नहीं हो ...
और मै बस सराभोर होकर
उन्हें प्यार से निहारता ही रह जाता हूँ ...
Wednesday, June 9, 2010
धड़कन ...
टूटता है दिल तो
आवाज भी नही होती है
एक अर्से पहले तुमने मुझसे मुंह मोड़ लिया था
और मै.. अब तक
मेरे दिल के टुकड़ों को समेट रहा हुं
ज़माना भी मना रहा है जशन
तेरे रुखसत का ...
कर रहा है कामयाब कोशिश
तेरी हर निशानी को मिटाने का ..
मै भी सोच रहा हुं
सब निशानियाँ तुझको लौटा दू
एक बार आओ
और ये सुनी पड़ी चांदनी
ये सुर्ख शबनम
तेरे मेरे लिखे ख़त
तेरे बदन की खुशबु
मेरे चेहरे के हर रेखाओं में अटकी हुवी
तेरी मुस्कुराहटें ...
मेरे हातों की लकीरों में
अब भी तक़दीर से उम्मीद करती हुवी
तेरे हातों की लकीरें ...
सबकुछ समेट कर चले जाओ
कुछ ना कहते हुवे....
पर हाँ जाते जाते
इस मृत दिल पे
दस्तक जरुर देते जाना
कुछ पल ही सही
इसे धड़कने की वजह देते जाना ...
Written By - Sajid Shaikh
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