
अकेलापन...
अकेले होने का दर्द
बहोत ही होता है
कोई रौशनी ..कोई आशा नजर नहीं आती ..
विचार और भावनाओं की बढ़ जाती है कशमकश...
और धीरे धीरे व्यक्तित्व सिकुड़ने लग जाता है
हलके हलके फिर ये
दिल-ओ-दिमाग का तूफाँ
भर के आता है आँखों में
बादलों की तरह ...
और बरसने के लिए हो जाता है मजबूर ...
लेकिन एक बात है जरुर
ये अनोखा बहाव
दे जाता है मुझे एक नयी पहचान
और मेरी आँखों से छलके हुवे
मेरे आंसुओं के हर बूंद से
मेरे व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब
मुझसे मुस्कुराकर कहता है के
तुम अकेले नहीं हो ...
और मै बस सराभोर होकर
उन्हें प्यार से निहारता ही रह जाता हूँ ...
Hello sir, mallika again.
ReplyDeletethanks for sharing your link.
just wanted to tell you that; i really loved the way you jott down your feelings on the ppr i mean screen...
hope to see your new creations soon...
nice nazm
ReplyDeleteShukran Mallika and Vinay jee :-)
ReplyDeleteअकेलेपन से ....
ReplyDeleteविचार और भावनाओं की बढ़ जाती है कशमकश...
और धीरे धीरे व्यक्तित्व सिकुड़ने लग जाता है
बिलकुल,, बिलकुल ठीक लिखा आपने
अकेलेपन की व्यथा को लफ़्ज़ों में खूब वर्णन किया है
और चित्र
जो नहीं कह दिया गया है
वो भी कह रहा है ... वाह !!
प्रिय साजिद भी,
ReplyDeleteआपकी रचनाएँ वैसे भी दमदार होती है | अकेलापन से लेकर कईं कविताये पढ़ चुका | वाकई देर सही, दुरस्त ! आजा ही ब्लॉग पर आया और फोलोवार्स बन गया | अस्सलामवालेकुम !
बहुत ही सुंदर!
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
shukriya Pankaj jee ..thodi si koshish ki hai maine ..aur kuchh bhee nahi ...shukran
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