Wednesday, June 16, 2010



अकेलापन...
अकेले होने का दर्द
बहोत ही होता है
कोई रौशनी ..कोई आशा नजर नहीं आती ..
विचार और भावनाओं की बढ़ जाती है कशमकश...
और धीरे धीरे व्यक्तित्व सिकुड़ने लग जाता है


हलके हलके फिर ये
दिल-ओ-दिमाग का तूफाँ
भर के आता है आँखों में
बादलों की तरह ...
और बरसने के लिए हो जाता है मजबूर ...
लेकिन एक बात है जरुर
ये अनोखा बहाव
दे जाता है मुझे एक नयी पहचान
और मेरी आँखों से छलके हुवे
मेरे आंसुओं के हर बूंद से
मेरे व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब
मुझसे मुस्कुराकर कहता है के
तुम अकेले नहीं हो ...
और मै बस सराभोर होकर
उन्हें प्यार से निहारता ही रह जाता हूँ ...

Wednesday, June 9, 2010


धड़कन ...

टूटता है दिल तो

आवाज भी नही होती है

एक अर्से पहले तुमने मुझसे मुंह मोड़ लिया था

और मै.. अब तक

मेरे दिल के टुकड़ों को समेट रहा हुं

ज़माना भी मना रहा है जशन

तेरे रुखसत का ...

कर रहा है कामयाब कोशिश

तेरी हर निशानी को मिटाने का ..

मै भी सोच रहा हुं

सब निशानियाँ तुझको लौटा दू

एक बार आओ

और ये सुनी पड़ी चांदनी

ये सुर्ख शबनम

तेरे मेरे लिखे ख़त

तेरे बदन की खुशबु

मेरे चेहरे के हर रेखाओं में अटकी हुवी

तेरी मुस्कुराहटें ...

मेरे हातों की लकीरों में

अब भी तक़दीर से उम्मीद करती हुवी

तेरे हातों की लकीरें ...

सबकुछ समेट कर चले जाओ

कुछ ना कहते हुवे....

पर हाँ जाते जाते

इस मृत दिल पे

दस्तक जरुर देते जाना

कुछ पल ही सही

इसे धड़कने की वजह देते जाना ...

Written By - Sajid Shaikh

Sunday, May 30, 2010


जिंदगी और मैं

जिंदगी देती मुझे हर एक मौका

वो तराशती रहती है मेरे अक्स को

मुश्कील से मुश्कील हालातों में डालकर

अजमाती रहती है

मेरे अहंकार, सब्र और विश्वास को

मेरे दिल की तारों को रख देती है झनझोडकर

और कहती है मुझसे

के अब छेड दे एक खुबसुरत सी धुन

गर छेड सको

मै भी अब लगा हु मुस्कुराने उसपर

और समझने लगा हूँ उसके तौरतरीके

उसकी अजमायीश को

अब कहीं न कहीं ये एहसास हो रहा है मुझे

के ये सब हो रहा है

मुझे इंसान बनाने के लिए

अब सिर्फ मुझे देनी है इज़ाज़त

खुद को तराशा हुवा हिरा बनाने की लिए

Written By-Sajid Shaikh ( sajid1111@gmail.com)

जिंदगी और तुम ...

दिल के तारों की

कभी तो आवाज सुना करो

अपने आप से

कभी तो यूँ मिलाओ आँखे

ये जिंदगी की सरगम

ऐसे ही फसे जा रही है

ख्वाहिशो और अरमानो को पूरा करते करते !

उलझाना तो है ही काम उसका ...

निकाल सको तो निकालो खुद को

इस जिंदगानी की दलदल से !

जिंदगी तो ऐसे भी है परेशां

उससे यूँ न उलझा करो ...!

पार हो जाओ उसके ...!!!

काबिज करके रखो इसे मुट्ठी में

अपनी आत्मा से निकालो

एक ऐसी यशस्वी धुन

के हो जाये जिंदगी

अपने आप में ही मगन

फिर देखो जिंदगी कैसे आती है

तुम्हारे पास मुस्कुराते हुवे

और करती है सलाम तुम्हे

बड़े अदब और एहतराम से ...

Written By-Sajid Shaikh (sajid1111@gmail.com)


Thursday, May 27, 2010


नमाज़

आज ईद का दिन है !

मै भी निकल पड़ा हजारो लोगो के साथ

कदम से कदम मिलाकर

उस पाक खुदा की हाजरी में ..

मेरे साथ चल रहे थे

हजारो लोग साफ सुथरे कपडे पहनकर

बेहतरीन से बेहतरीन इत्र लगाकर ..

सारे खुशनुमा लगे रहे थे वो

मुस्कराहट और ख़ुशी के क्या कहने

आज ईद जो है..!

चलते चलते मै रुक गया

मस्जिद की सीडियों पर

मेरे कई भाईबंद वहा थे भूखे नंगे ..

न कपडे थे उनके बदन पर

न खाने को कुछ और न ही वो खुशबूदार इत्र

मै और न बढ़ सका..

और मैंने सारा दिन उनके साथ बिताया

नमाज़ न पढ़ते हुवे ...

कोई मौलवी कह रहा किसी से मेरे बारे में ..

" आज इस बन्दे की नमाज़ कुबूल हुवी है

नमाज़ न पढ़ते हुवे

और खुदा हम हजारो लोगो की नमाजे

भी कुबूल कर लेगा इस की वजह से .."


Written By-Sajid Shaikh (sajid1111@gmail.com )

ख़त...

तुझे ख़त लिखते लिखते

परेशां हो जाता हूँ

समझ मे नहीं आता

कौनसे लफ्ज से तुम्हे सलाम करू ...

किन अल्फाजो से अंजाम दू

किन लफ्जो को सजाऊं ...

किसको तेरे कदमो मे बिछाऊं..

किन्हे तेरे हातो के मेहंदी मे रंग दू .

किसे तेरी पलकों पे सजाऊ ..

किसे तेरी जुल्फों से बांध लू ..

किसे तेरी मुस्कराहट मे घोल दू ...

माफ़ करना तुम्हे ख़त नहीं लिख सकता मै ...

मै आऊंगा ...

मै तुम्हे मिलूँगा ...

बस मेरी आँखे पढ़ लेना ...!!!

Written By-Sajid Shaikh (sajid1111@gmail.com )




अक्स ( दुसरा मन )
मेरे अक्स से मै अक्सर लढता रहता हु..
आज मेरी जीत हुवी है !
जीत तो नहीं कह सकते
पर हम आज एक ही बाजु में है ..
आज न कोई शिकवा , न कोई शिकायत है ..
मै तो हरदम खुद को
बचाता रहा अपने अक्स से ..
पर वो तो हावी होता गया ..
हमेशा से ही जीतता रहा मुझसे
तन्हाई , ख़ुशी , मज़बूरी , हर जगह वो छाया था
हर उस जगह, वहां मै था मैंने उसे पाया था
मेरे रोम रोम में घुसकर
मेरे अस्तित्व को तहस नहस किया था उसने ..।
कभी न जीत पाया था मै उससे ...

लेकिन आज मै जीता हु...
क्यो के आज मेरी मौत हो चुकी है ...
आज हम एक ही बाजु में है ...
Written By-Sajid Shaikh (sajid1111@gmail.com )




Written By-Sajid Shaikh (sajid1111@gmail.com )





तमन्ना..
अब हम थक गए है बच्चो..
अब इन हातो में ताकत कहा ?
इन कि लकीरे देखने तक कि नहीं थी फुर्सत हमें..
अब एक एक लकिरो को
गिनने के सिवा बचा क्या है ?
हजारो पलो को हम ने जिया है ख़ुशी और गमो
इनही हातों ने तुम्हे थामे रखा था
हर उस मोड़ पे जहा जहा तुम गिर गए थे
हर मुसीबत झेली थी तुम्हारे लिए
हर पल को कुर्बान किया था
तुम्हारे ख़ुशी के लिए
बच्चो , हर बार की तरह इस महीने
और इस महीने से आगे,
पैसे न भेजना तुम आ जाना..
तुम्हारे लिये आँखे बिछाये बैठा हु
एक बार गले लगाने को मन करता है
इस बार तुम आ जाना बेटा..
सिर्फ तुम आ जाना ...
Written By-Sajid Shaikh (sajid1111@gmail.com )





अलविदा ...

ऐसा नहीं करते ...

गर मिल ना पाए तो क्या ...?

धड़कने तो हमारी

धड़कती रहेगी एक ही साथ एक ही वक़्त ...!

चलो आंसू पोंछ लो...

खास कर के इन अश्को को संभालो ॥

इन्हें गिरने ना दो जमीं पर

ये हमारे टूटते बिखरते सपनो के निशाँ है !

यूँ मेरी सजी हुवी तस्वीर को

आँखों से ना बहने दो...!

ऐसा नहीं करते ...

फिरसे वापस ले लो इन अश्को को

तैरता रखो मुझे तुम्हारी आँखों में

जिंदगी भर के लिए !

कम से कम सुकून तो रहेगा मुझे के

मेरे प्यार की सच्चाई

तेरे नम आँखों में मौजूद है

जिंदगीभर के लिये... और मुझे दे रही है हौसला ...

खुद को जिंदा रखने के लिए !

written By-Sajid Shaikh (sajid1111@gmail.com )

तोहफा

ना लौटा सकता हु

तेरे वो प्यार के पल

ना तोल सकता हु

तेरे आंसुओ का गीलापन

इतना क्या चाहती हो तुम मुझे

इतना अमिर कर दिया है तुमने मुझे

अपनी आत्मा को देकर !!

किस तरह से जताऊ मेरा प्यार तुम्हे ?

फुलोसे से सजाऊ पलको पे बिठाऊ ,

न कुछ दे पाऊ तो नजरे चुराऊ ?

नहीं नहीं

आज मै ले ही आता हु

चाँद तारे जमींपर...सिर्फ तुम्हारे लिए !!!

Written By-Sajid Shaikh (sajid1111@gmail.com)


रुखसत...

तुम्हे रुखसत किया था

तो बाहर धीमी सी बरसात हो रही थी ...!

जिसकी झलक

मेरी विवश आँखों में साफ दिखाई दे रही थी !

बदली सी छा गयी थी मेरे मन में

एक अनोखा सा उदास सा रुखापन ...

अब बाहर बरसात बढ़ने लगी थी

हात छुटते ... नहीं छुट रहा था

मेरी उंगलिया ... तुम्हारे उंगलियों में

ना जाने क्यों अटक रही थी !

बहोत कुछ कहना था

पर तुम रुखसत हो गए !

बाहर अब बरसात धुवांधार बरसने लगी थी

और ना जाने क्यों अचानक...

मेरे भी आँखे बरसने लगी ..धुवांधार ..!!

टूटकर जो चाहती थी तुम्हे !

तुम वापस कब आओगे ?

Written By-Sajid Shaikh ( sajid1111@gmail.com )





हमरूह ...


जरासा 'सत्य' क्या कह दिया


नाराज हो गए दूर चले गए मुझसे ...


ऐसी थोड़े ही दोस्ती होती है...!


मुझे बिखराके चले गए


अब कौन समेटेगा मुझे ?


तुम तो वोही थे ना जो समंदर सा दिल रखते थे !


जो असीमित थे ...आकाश की तरह !


मेरे रहबर थे.. मेरा विश्वास थे...!


मेरी गलतियों को छुपाकर मुझे थामने वाले थे तुम ..


मै गिर जाऊ तो सँभालने वाले थे तुम


मेरा तो आईना थे तुम ...समाज के लिये ..!.


ऐसा क्या हो गया ?


ऐ दोस्त फिर से आ जाओ


मेरे खालीपन को भर दो


मेरी आंखो मे तैरता विश्वास बन जाओ


मेरे जज्बात को किमत दो...


फिर से लौटा दो मेरी रूह की जिंदादिली


और फिर से बन जाओ


मेरे हमरूह !
Written By- Sajid Shaikh

कविता

ये कैसा शोर है

मेरे अन्दर जो मचल रहा है

तुफान की तरह ...

नाकाम सी कोशिश कर रहा है

जुबाँ पर आने कि...

ये कैसी चाहत है तेरी

जो मुझे सुबह से शाम तक

कर देती है विवश

और फिर मेरी आँखों तक आ जाती है मेरी साँसे

छटपटासा जाता हु मै ...

नस नस में तुम दौड़ने लगती हो

और शाम होते होते ये पूरा एहसास

एक बेहतरीन कविता के रूप में जन्म ले लेता है ...

लोगो के दिल से 'वाह' निकलती है

और मै फिर से उसी शोर के और गुमशुदा हो जाता हु

उसे नए तरीके से शब्दबद्ध करने के लिए ...

Written By-साजिद शेख (sajid1111@gmail.com )

बारिश
कभी लगता है
मेरे खुबसूरत विशाल बंगले के बाल्कनी में से
बारिश की आहट सुनु !
बारिश आने पर एक गर्म चाय का प्याला लेकर
बारिश की रिमझिम गिरती बूंदों को
मेरे चेहरे और बदन पर नाचने की अनुमति दू !
एक लम्बी सांस लू
और अगले ही पल ...हर्षित हो जाऊ
बारिश बन जाऊ !
आहिस्ता आहिस्ता गर्म रजाई में
खुद को समर्पण कर दू
मिठीसी सी नींद के गोद में खो जाऊ !

आज मुझे याद है
ऐसी कई बारिशें गुजरी है
जब मै टूटे हुवे बर्तन में
अपने घर से टपकते हुवे
बारिश की बूंदों को जमा करता था
और रातभर जागा करता था
भीगी हुवी रजाई को बदन पर ओढ़े हुवे ...!

Written By-साजिद शेख (sajid1111@gmail.com )

भंवर..

हर रोज भंवर सा हो जाता हूँ मै आकर्षित

तुम्हारे कोमल पत्तियों जैसे व्यक्तित्व में ...

तुम्हारी खुशबु मुझे पागल सा कर देती है ...

हर एक शाम होते होते

तुम अपनी पत्तियाँ हलके से मिटा देती हो

और मै ..मै तो कैद हो जाता हूँ तुम्हारी पत्तियों में ..

तुम तो अनजान सी रहती हो इस बात से

के मै तुम्हारी खुशबु को भी चुरा लेता हूँ ...

हो रहा होता हूँ मदहोश सा ...

खुद को खोते रहता हुं

तुम्हारे प्यार की धीमी खुशबू मे...

कर रहा होता हूँ खुद को सुगन्धित और बेकाबू ...!

जब सुबह की पहली किरण

तुम्हे चूमकर खुलवाती है

ये तुम्हारी मखमल सी पत्तियाँ ...

तब भी मै नहीं निकल पाता हूँ

तुम्हारे व्यक्तित्व के दायरे से ...!

फिर से करता रहता हूँ इंतज़ार शाम होने का

फिर से उन पत्तियों के मिटने का !

फिर से सुगन्धित और मदहोश होने का ...!


देखा ...तुम्हे पता भी नहीं चलता .. !!!

Written By-साजिद शेख (sajid1111@gmail.com )

कठपुतली

जी हाँ

वो ही तो हु मै ॥

मेरा मन तो कही और है

पर डोरिया तो तुम्हारे पास है !

खुदसे ना हिल पाऊ मै

और नहीं चल पाऊ अपनी दिशा में...

मेरी मुस्कराहट तक कैद है तुम्हारे इस 'खुले' समाज में ..!

ना मेरी पायल ही गुनगुना सकती है

मेरे मन का गीत ..!

ना हो सकती है मेरी निगाहे ऊपर

और ना ही इन डोरियो को तोड़कर 'मै' नाच सकती हु ,

बारिश की हर बूंदों के साथ मोर की तरह..

मेरे 'अपने' रंगबिरंगी पंखो को फैलाकर !


लेकिन अब तुम हार रहे हो ॥

मेरी आत्मा को कैद करने की

नाकाम कोशिश कर रहे हो...

मुझे तो तुम पर हँसी आती है !

और मै हुस पड़ती हु 'मेरे अपने' हँसी के साथ खिलखिलाकर !


ये सोचकर के

मेरे मन को

कौनसी डोरी से बाँधोगे ???

Written By-साजिद शेख (sajid1111@gmail.com )



सत्य

मै बताऊ या ना बताऊ

फिर भी सच तो सामने आएगा ही

बादल है ...भर जाने पर बुँदे तो बरसायेगा ही ...

गिरा दिया जायेगा ॥छिपा दिया जायेगा

बदनाम और जलील किया जायेगा

कई झुटे तराजू में तोला जायेगा

आँख पर पट्टी है फिर भी साबित किया जायेगा !

खैर जाने दो ये ऐसे नहीं दिखेगा ..

सिर्फ दिल को टटोलो वो वोही है..

सिर्फ इंतजार करो ,

इसकी आवाज से

तुम्हारा रोम रोम पुलकित हो जायेगा

ये तुम्हारे आसुओंसे बहेगा

तुम्हारे जुबान पर आएगा

और कहेगा

मै हु मै हु..और सिर्फ मै हु..

सत्य ...

Written By-साजिद शेख (sajid1111@gmail.com )


रहमान ..

तुम क्या थे ..कुछ खबर भी है तुम्हे ..

एक रक्त का बूंदएक रक्त की गुठली..

किसने बनाया है तुम्हे ?

कौन था वो जो

तुम्हे अपनी माँ के पेट में

मीठी नींद और सुकून देता था

किस बात की अकड है तुम्हे ?

याद है जो सीना तान के तुम चलते हो इस जमीं पर

उसका ना कोई वजूद था

और ना थी तुम्हारे रिड की हड्डी

के तुम खड़े हो जाओ अपने दम पर ..

वो कौन था कभी सोचा है जिसने रूह फुंकी थी ..

तुम्हारे जिस्म में !

और नूर ही नूर भर दिया था

तुम्हारे इस मिटटी के बदन में ..

तुम तब भी ना जान पाए थे और ना जान पाओगे कभी ..

चलो एक बार माफ़ी मांगलो..

उसकी अनगिनत मेहेरबानियो के लिए

रिड कि हड्डी को थोडासा झुकावो ...

सजदे में गिर जाओ ..

शायद वो तुम्हे माफ़ कर दे वो तो रहमान है .. !

साजिद शेख (sajid1111@gmail.com )

हिन्दू मुस्लमान...

चलो कुछ ऐसा कर लेते है

हिन्दू मुस्लमान एक हो जाते है

कुछ इंसानियत की बाते करते है

हम खेलते है पवित्र होली केशरी रंगों से

और तुम खेलो हरे रंग से ..!

शांति के परिंदे को देते है उड़ने की इजाजत

मंदिर के कलश पर मस्जिदों के मीनारों पर ...!

मिठाईयां दिवाली की हम बांटे तुम परोसो खीर और शीर्खुर्मा

घर की रंगोलियो में ईद का चाँद सजाते है

जहर भरी फिज़ाओ में प्यार का शंखनाद करते है

आओ यारो कुछ इंसानियत की बाते करते है

आओ यारो गले मिलते है !

साजिद शेख (sajid1111@gmail.com )

सितम ..

कितने निशान छोड़ोगे

अपने सितम के मेरे तन पर.. आत्मा पर ..?

अब तो मेरा चेहरा ही दे रहा है गवाही

मेरे अन्दर से टूट जाने की ...

हर लम्हा .., हर कदम पर

कांटे ही कांटे बिछाते हो तुम लोग .

इतना खामोश कर दिया है तुम्हारे जख्मो ने मुझे

के अब मेरा आक्रोश हि नही सुनाई देता है मुझे..

ना रही रिश्तो की कसक ना रही एहसास की रौनक ..

और कहातक जाओगे ?

कितने जुल्म करोगे ?


पर अब मै उठ खड़ा हुवा हूँ

तुम्हारे दिये हुवे ,

एक एक निशान के हिसाब के लिए...

रब्बा उनकी रक्षा कर ..गर हो सके ..!

साजिद शेख (sajid1111@gmail.com )

मेरा नया कदम ...

ना अब रोक पाओगे मुझे

ये मेरा नया कदम है ..

जिंदगी हासिल करने के लिए ..!

मेरी आँखों में अब तुम पाओगे ...

नए सपनो के निशाँ

दिल की जमीं में ...सख्त जज्बात

मेरे इरादों में ...नयी बुलंदी

और मेरे लफ्जो की अदभुत परिभाषा ..!

अब ना उम्मीद करो मुझसे के

मेरे पहलु में आकर रो लोगे

ना हिम्मत करना अब

की लिख दोगे एखाद ग़ज़ल मुजपर ..

अब ना आँचल मिलेगा

तुम्हे अपना पसीना पोचने के लिए

और ना ही इजाजत मिलेगी

मेरे अस्तित्व को मिटाने के लिये ...

रोक सको तब भी ना रोक पाओगे...

ये मेरा नया कदम है

तुम्हारे साथ बराबर खड़े रहने के लिए ...

साजिद शेख (sajid1111@gmail.com )

शहनाई

तुम्हे बस मै देखता ही रहा

शादी के लाल सुर्ख जोड़े में लिपटी हुवी...

शहनाई की चीरती हुवी धुन

मेरे दिल को छलनी कर रही थी...

तुम आँख भी मुझसे कैसे मिलाती

जिसको मेरे रूह ने चुमा था...

सर से पाँव तुम सजी थी तुम

तुम हिना भी कैसे लगा सकती थी ?

जबकि तेरे हाथ की लकीरों में सिर्फ मै ही मै था ...

धीमी मोगरे और गुलाबो की महक

मेरे तन बदन को जला रही थी

फिर भी मै खामोश सा तुम्हे सिर्फ देखता रहा

खुदको आखरी बार तेरी आँखों में धुंडता रहा !

मै सुन्न हो गया था क्या यही थी तुम्हारी वफ़ा ?

क्या इतनाही साथ था अपना ?

खैर ॥छोड़ो ।क्या गिला ..क्या शिकवा ..खुश रहना ..

सिर्फ एक छोटासा काम करना

जब तुम्हे मेरी मौत की खबर आये

तब यही लाल सुर्ख शादी का जोड़ा

यही मोगरे के गजरे और यही गुलाबो की धीमी महक

मेरी कब्र पे छोडकर जाना

मेरी आत्मा के सुकून के लिए ...

Written By-साजिद शेख (sajid1111@gmail.com )


कवी..

मै कोई कवी नहीं हूँ

और न ही लिख सकता हूँ कोई कविता !

सुना है लोग जरुर कहने लगे है मुझे

एक महान कवी ...!

पर मै कुछ खास नहीं करता !

सिर्फ तेरी यांदों के मोती को

दिल की सींप से निकलकर रख देता हूँ

जैसा के वैसा उनके सामने !

रखा है मैंने मेरी आँखो के नजरीये का

एक साफ़ सुथरा आइना..

जो दर्ज करता रहता है

जिंदगी की हकीकते!

मै करता रहता हूँ जी तोड कोशिश

'सत्य' को 'सत्य' कहने की !


सिर्फ इतना जनता हूँ के

जो निकलती है दिल से

वो पहुंचती है दिल तक !

वरना मै कोई कवी वगैरा नहीं हूँ

और ना ही हूँ

उन महान कवियों के नाख़ून के बराबर !

Written By-साजिद शेख




किस्मत

मैंने कहा तुम मेरी हो ..

और तुमने कहा मै तुम्हारी हूँ

कहते कहते रुक गए थे हम दोनों

अपने अपने दायरें में ही रुकना पड़ा था हमें

फिर संभल गए ...(?)

जुदा हो गए और गुम हो गए अपनी अपनी दुनिया में ...!

जिंदगी और किस्मत का फरमान

ले लिया था हमने अपने सर आखों पर !

आज भी तुम्हारे आँचल के धागे से

मैंने बाँध रखा है अपने मन को...!

आज भी तडपाती है मुझे तेरी चूड़ियों के खनखनाहट !

और हर पल महसूस होती है तेरी आहट...

जान देने को जी करने वाली तेरी मुस्कराहट !


फिर कहीं अचानक

बार बार ये सवाल आता है जहन में

हम संभले क्यों थे मगर ?

साजिद शेख




आंसू ...

आज जी कर रहा है के

जी भर के रो लूँ

आज आंसू कर रहे है इल्तजा

के हमें बहने दो ... !

कितना दर्द छुपाओगे अपने सीने में..?

आज हम को बह जाने दो ...!

इस दर्द को बयाँ हो जाने दो

क्या उतर आये हम तुम्हारी आंखोसे ?

मैंने कहा उनसे

नहीं अभी वक़्त नहीं है आया

ये आँखे नहीं होगी नम

जबतक करूँगा मै तूफाँ का सामना

जबतक के नहीं पाऊंगा जीत

तब तक तुम्हे मेरे ही साथ

मेरी आँखों में तैरता ही रहना होगा...

मै एक मिसाल हूँ दुनिया के लिए

ये आँखों के अंदर से ही तुमको कहना होगा

ये कश्मकश मेरे और तुम्हारे बीच ही रहने दो

फिर कभी ना कहना के हमें एक बार तो बहने दो...

साजिद शेख

मिलन

साँसों में सांस घुलमिल रही है

मै खामोश हूँ और तुम भी !

गर्दन निचीं है और ये नज़रें भी झुकी हुवी

खेल रही है पैरों के अंगूठे से

मन ही मन में खेल

लगा नहीं पा रही है मन के भावनाओं का मेल

हयाँ की चादर ओढी हुवी सी तुम

और तुम्हारे होटों की मुस्कान में

खुदको धुंडता हुवा मै..

तुम्हारी हातों की हिना में ,

मेरे प्यार को नक्शाता हुवा मैं ...

फिजायें कुर्बान है

आसमाँ सजा है मंडप की तरह

मोगरे की बावरी खुशबु है कहीं पर

और कोने में गुलाब है मुस्कुराता हुवा ...

रजनीगंधा तो अभी से ही है खिल बैठी

मै तो हैरान हूँ ये सोच सोच कर

इन्हें कैसे पता चला के आज हमारा मिलन है ...???

साजिद शेख




बुरखा


मुझसे ज्यादा लोगो को है फिक्र


मेरे पर्दे में रहने की घुट रही है


उनकी साँसे ॥और अटक रही है ...


पर्दे की जालीदार बुनाई में...!


क्या उन्हें पता है की


जब जब गुजरी हूँ मै बिना पर्दे के


कितनी नजरों ने किया है मेरा बलात्कार !


कितनी आँखों ने किये है मेरी आत्मा पे वार...!


इस परदे की सामूहिक आलोचना करनेसे पहले


कभी एहसास किया है मेरे मन का..


जो की इन पाक धागों में महफूज़ है


मै तो खुश हूँके इस पर्दे ने सिखाया है मुझे


नज़र 'ऊंची' करके चलना


और दिलाया है एहसास


के मेरी आत्मा सुरक्षित है ..!!


साजिद शेख

बदलाव

कितने दिनों से मुस्कुरायाँ नहीं हूँ

मै ये चेहरे पर जमी रेखाएं छिनती है

मेरा अपना व्यक्तित्व मुझसे !

विचार विचार बस विचार ही विचार...

क्या बना दिया है जिंदगी तुने मुझे

हर एक को शक की निगाह से देखता हु मै

कोमल से दिलों को कुचलता चला जाता हूँ

विश्वास रखना दुसरो पर तो कोसों दूर

अपनों को ही नहीं 'सुन' पाता हुं मै...!

अब तो 'मुझसे' ज्यादा

मेरा 'अक्स' हि लोगों से बात करता है !

ये प्रगती का कौनसा रास्ता चुन लिया है मैंने ?

दिल को कहाँ गिरवी रख दिया है मैंने ?

नहीं अब नहीं होता

नहीं चाहिए ऐसी प्रगति ..ऐसी आधुनिकता... !

अब मै मेरे चेहरे की 'सिकुड़ी' हुवी

एक एक मुस्कान की लकीरों को

'खुला' करने वाला हूँ ...

और मेरे दिल की सक्त जमीं को

कोमल भावनाओं से सींचने वाला हूँ

ताकि जिंदगी भी कह उठे ...

कहीं ये इन्सान की शक्ल में फ़रिश्ता तो नहीं...!!!

साजिद शेख




बचपन

आज लैपटॉप है मेरे पास !

गाड़ी है ..इन्टरनेट पर दोस्त है..

पर वो बचपन की यादें अब भी सताती है !

कितने दिन हुवे ..

ना मिटटी की खुशबु सूंघी है

और ना ही बनाई है

इन शरारती नजरों ने

आसमान में किसी खरगोश की तस्वीर !

ना डंडो से उडाई है गिल्ली

दूर दूर नजरो के पार !

न डुबकी लगाई है

किसी पेड़ की शाख से गहराती नदी में

खुद ही फेंका हुवा सिक्का खोजने के लिए ...!

और ना ही उडाई है पतंग किसी और की छत से

रंगीले आसमान में !

आज मैंने छुट्टी मंजूर करा ली है दफ्तर से

आज मेरी स्कुल की बेंचपर जाकर बैठने वाला हूँ...

फिर एक बार मेरे बचपन को 'जीकर' आने वाला हूँ !

Written By-sajid shaikh

यांदे...

पुराने कागजों के ढेर को

लिया था साफ़ करने के लिए

कुछ पहचानी सी खुशबू आ रही थी ... !

देखा तो किताबो में सुर्ख हुवे गुलाब की...

मै तो देखता ही रह गया

इस फूल को देते देते रह गया था तुम्हे !

आँखों से तेरी यादे बहने लगी

दो चार अश्क की बुँदे पंखुडियो पर गिर गयी...

दिल की नमी और फूलो की नमी एक सी हो गयी !

लेकीन दिल को मेरे सुकून है,

इस बात पर एतबार है ,

के अबतक तो मेरी धडकनों ने

ये खबर पहुँचाई होगी तुम तक

तुम्हारे दिल को किया होगा

मेरी यादो से ...नम

और तुम्हारी आँखों को किया होगा मजबूर

दो चार अश्क ढालने के लिए ...!

साजिद शेख


मलिका-ऐ-हुस्न ..

क्या कहूँ मै तुम्हारे लिए ..

जन्नत की हुर ,

आँखों का नूर ,

या फिर चाँद से

धीरे धीरे पिघलती हुवी रौशनी ..

या मेरे दिल कि झील में

हलके से उतरता सावन ..

या कहु मै तुम्हे

फूलों के रस का निचोड

या फिर कहूँ शबनम कि पाक बुंद

जो मेरे आंखो कि ठंडक है

या फिर एक प्यासे कि प्यास ...!

ऐ हुस्न की मलिका

तुम्हे पाना मेरे बस में नहीं

बस तू रौशनी होकर

गुजर जा मेरी रूह से और कर दे मुझे रौशन

ताकि दुनिया को मै बता तो सकू के तुने मुझे 'छु ' लिया है ॥

साजिद शेख

Wednesday, May 26, 2010

नकाब


नकाब

कितने नकाब लेकर चलती हु मै
अब तो इसकी आदतसी हो गयी है ...
चेहरे पर लगाती हु मै
झूटी हँसी ..बनावटी मुस्कुराहटें !
कितने तो भावनाओ का कत्ल करके
तुम्हारे इर्द गिर्द ...तुम्हारी दुनिया बन जाती हु मै !
सिर्फ तुम्हारे ख़ुशी और अहंकार के लिए !
रोज बरोज मेरे और मेरे इस नकाब
के बिच का फासला कम होता जा रहा है...
एक बार टटोला तो होता
मेरे नकाब के पीछे का दिल
मेरे अन्दर के जज्बात की रौनक
कभी तो दी होती इज्जत
मेरी तमन्नाओको ..

अब तो मुझे डर लगने लगा है
के कही इस नकाब के साथ हि
ना मै मर जाऊ...
और तुम मेरे नकाब को ही ना दफना दो...

मेरी आखरी ख्वहिश है
मेरी आखरी सांस से पहले
मेरे इस नकाब को उतार दो ..
मुझे आजाद कर दो
और मेरे असली चेहरे के साथ न्याय करो
ताकि दिल में ये सुकून तो रहे
के
तुमने मेरे असली चेहरे को दफनाया है ..
मेरे आखरी वक्त
मुझे मुझसे तो मिलने दो ...

Written By--Sajid Shaikh ( sajid1111@gmail.com )

तरंग


तरंग ..


मै तो स्तब्ध ही था शांत ..


तालाब के पानी की तरह


एक ही जगह जमा हुवा


और तुम अचानक


एक प्यारी सी बूंद बनकर टपक पड़ी


और तुम्हे पता है


कितनी तो तरंगे उठी मेरे अंतरंग में ..?


दिशा दिशाओ में फ़ैल सा गया मै..


दायरा पे दायरा बढ़ता गया मै ..


ये क्या कर डाला तुमने ..


और तुम ..!


मै तो विस्मयचकित नजरो से


बस देखता ही रहा तुम्हारा अस्तित्व.. !


जो बस एक बूंद ही था ,


जो आकर गिरा था


मेरे जीवन के केंद्रबिंदु में


उसका कोई निशाँ भी ना रहा ?


क्यों इस तरह से मिट गयी तुम मुझमे ?


और क्यों बना दिया मुझे


एक विशाल, विशाल, विशाल सी तरंग !!!


writteb by --sajid shaikh




Tuesday, May 11, 2010

Keemat




किमत...
आज खुदको बेच आया हूँ
दुनिया के बाज़ार में
विश्वास था मन में
के अनमोल था मै ..
रद्दी के भाव बिक आया हूँ मै ...
हँसता हूँ खुद की तकदीर पर
क्या दिन दिखला रही है वो ..
कितना मजबूर करा रही है वो..
आज मेरी सारी कविताये बेच आया हूँ मै..
दिल की नमी को शुष्क कर आया हूँ मै..
अब थोडासा हलका लग रहा है
खुला खुला सा महसूस हो रहा है
तकदीर से अपना तो झगडा था
पर अब उसपर भरोसा हो रहा है ...
लेकिन ये विश्वास है के ..
मेरे हर कविता का एक एक लफ्ज़
जो गुजरेगा किसी के दिल से ..
वो बहेगा अनमोल आंसू बनकर
और मुझे फिर से लौटाएगा
मेरी कीमत
जो अनमोल है ...
Written By-Sajid Shaikh (sajid1111@gmail.com )