मिलन
साँसों में सांस घुलमिल रही है
मै खामोश हूँ और तुम भी !
गर्दन निचीं है और ये नज़रें भी झुकी हुवी
खेल रही है पैरों के अंगूठे से
मन ही मन में खेल
लगा नहीं पा रही है मन के भावनाओं का मेल
हयाँ की चादर ओढी हुवी सी तुम
और तुम्हारे होटों की मुस्कान में
खुदको धुंडता हुवा मै..
तुम्हारी हातों की हिना में ,
मेरे प्यार को नक्शाता हुवा मैं ...
फिजायें कुर्बान है
आसमाँ सजा है मंडप की तरह
मोगरे की बावरी खुशबु है कहीं पर
और कोने में गुलाब है मुस्कुराता हुवा ...
रजनीगंधा तो अभी से ही है खिल बैठी
मै तो हैरान हूँ ये सोच सोच कर
इन्हें कैसे पता चला के आज हमारा मिलन है ...???
साजिद शेख
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