शहनाई
तुम्हे बस मै देखता ही रहा
शादी के लाल सुर्ख जोड़े में लिपटी हुवी...
शहनाई की चीरती हुवी धुन
मेरे दिल को छलनी कर रही थी...
तुम आँख भी मुझसे कैसे मिलाती
जिसको मेरे रूह ने चुमा था...
सर से पाँव तुम सजी थी तुम
तुम हिना भी कैसे लगा सकती थी ?
जबकि तेरे हाथ की लकीरों में सिर्फ मै ही मै था ...
धीमी मोगरे और गुलाबो की महक
मेरे तन बदन को जला रही थी
फिर भी मै खामोश सा तुम्हे सिर्फ देखता रहा
खुदको आखरी बार तेरी आँखों में धुंडता रहा !
मै सुन्न हो गया था क्या यही थी तुम्हारी वफ़ा ?
क्या इतनाही साथ था अपना ?
खैर ॥छोड़ो ।क्या गिला ..क्या शिकवा ..खुश रहना ..
सिर्फ एक छोटासा काम करना
जब तुम्हे मेरी मौत की खबर आये
तब यही लाल सुर्ख शादी का जोड़ा
यही मोगरे के गजरे और यही गुलाबो की धीमी महक
मेरी कब्र पे छोडकर जाना
मेरी आत्मा के सुकून के लिए ...
Written By-साजिद शेख (sajid1111@gmail.com )
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