Thursday, May 27, 2010


रुखसत...

तुम्हे रुखसत किया था

तो बाहर धीमी सी बरसात हो रही थी ...!

जिसकी झलक

मेरी विवश आँखों में साफ दिखाई दे रही थी !

बदली सी छा गयी थी मेरे मन में

एक अनोखा सा उदास सा रुखापन ...

अब बाहर बरसात बढ़ने लगी थी

हात छुटते ... नहीं छुट रहा था

मेरी उंगलिया ... तुम्हारे उंगलियों में

ना जाने क्यों अटक रही थी !

बहोत कुछ कहना था

पर तुम रुखसत हो गए !

बाहर अब बरसात धुवांधार बरसने लगी थी

और ना जाने क्यों अचानक...

मेरे भी आँखे बरसने लगी ..धुवांधार ..!!

टूटकर जो चाहती थी तुम्हे !

तुम वापस कब आओगे ?

Written By-Sajid Shaikh ( sajid1111@gmail.com )


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