Wednesday, May 26, 2010

तरंग


तरंग ..


मै तो स्तब्ध ही था शांत ..


तालाब के पानी की तरह


एक ही जगह जमा हुवा


और तुम अचानक


एक प्यारी सी बूंद बनकर टपक पड़ी


और तुम्हे पता है


कितनी तो तरंगे उठी मेरे अंतरंग में ..?


दिशा दिशाओ में फ़ैल सा गया मै..


दायरा पे दायरा बढ़ता गया मै ..


ये क्या कर डाला तुमने ..


और तुम ..!


मै तो विस्मयचकित नजरो से


बस देखता ही रहा तुम्हारा अस्तित्व.. !


जो बस एक बूंद ही था ,


जो आकर गिरा था


मेरे जीवन के केंद्रबिंदु में


उसका कोई निशाँ भी ना रहा ?


क्यों इस तरह से मिट गयी तुम मुझमे ?


और क्यों बना दिया मुझे


एक विशाल, विशाल, विशाल सी तरंग !!!


writteb by --sajid shaikh




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