Thursday, May 27, 2010


किस्मत

मैंने कहा तुम मेरी हो ..

और तुमने कहा मै तुम्हारी हूँ

कहते कहते रुक गए थे हम दोनों

अपने अपने दायरें में ही रुकना पड़ा था हमें

फिर संभल गए ...(?)

जुदा हो गए और गुम हो गए अपनी अपनी दुनिया में ...!

जिंदगी और किस्मत का फरमान

ले लिया था हमने अपने सर आखों पर !

आज भी तुम्हारे आँचल के धागे से

मैंने बाँध रखा है अपने मन को...!

आज भी तडपाती है मुझे तेरी चूड़ियों के खनखनाहट !

और हर पल महसूस होती है तेरी आहट...

जान देने को जी करने वाली तेरी मुस्कराहट !


फिर कहीं अचानक

बार बार ये सवाल आता है जहन में

हम संभले क्यों थे मगर ?

साजिद शेख



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