कठपुतली
जी हाँ
वो ही तो हु मै ॥
मेरा मन तो कही और है
पर डोरिया तो तुम्हारे पास है !
खुदसे ना हिल पाऊ मै
और नहीं चल पाऊ अपनी दिशा में...
मेरी मुस्कराहट तक कैद है तुम्हारे इस 'खुले' समाज में ..!
ना मेरी पायल ही गुनगुना सकती है
मेरे मन का गीत ..!
ना हो सकती है मेरी निगाहे ऊपर
और ना ही इन डोरियो को तोड़कर 'मै' नाच सकती हु ,
बारिश की हर बूंदों के साथ मोर की तरह..
मेरे 'अपने' रंगबिरंगी पंखो को फैलाकर !
लेकिन अब तुम हार रहे हो ॥
मेरी आत्मा को कैद करने की
नाकाम कोशिश कर रहे हो...
मुझे तो तुम पर हँसी आती है !
और मै हुस पड़ती हु 'मेरे अपने' हँसी के साथ खिलखिलाकर !
ये सोचकर के
मेरे मन को
कौनसी डोरी से बाँधोगे ???
Written By-साजिद शेख (sajid1111@gmail.com )
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