Wednesday, May 26, 2010

नकाब


नकाब

कितने नकाब लेकर चलती हु मै
अब तो इसकी आदतसी हो गयी है ...
चेहरे पर लगाती हु मै
झूटी हँसी ..बनावटी मुस्कुराहटें !
कितने तो भावनाओ का कत्ल करके
तुम्हारे इर्द गिर्द ...तुम्हारी दुनिया बन जाती हु मै !
सिर्फ तुम्हारे ख़ुशी और अहंकार के लिए !
रोज बरोज मेरे और मेरे इस नकाब
के बिच का फासला कम होता जा रहा है...
एक बार टटोला तो होता
मेरे नकाब के पीछे का दिल
मेरे अन्दर के जज्बात की रौनक
कभी तो दी होती इज्जत
मेरी तमन्नाओको ..

अब तो मुझे डर लगने लगा है
के कही इस नकाब के साथ हि
ना मै मर जाऊ...
और तुम मेरे नकाब को ही ना दफना दो...

मेरी आखरी ख्वहिश है
मेरी आखरी सांस से पहले
मेरे इस नकाब को उतार दो ..
मुझे आजाद कर दो
और मेरे असली चेहरे के साथ न्याय करो
ताकि दिल में ये सुकून तो रहे
के
तुमने मेरे असली चेहरे को दफनाया है ..
मेरे आखरी वक्त
मुझे मुझसे तो मिलने दो ...

Written By--Sajid Shaikh ( sajid1111@gmail.com )

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