Thursday, May 27, 2010


यांदे...

पुराने कागजों के ढेर को

लिया था साफ़ करने के लिए

कुछ पहचानी सी खुशबू आ रही थी ... !

देखा तो किताबो में सुर्ख हुवे गुलाब की...

मै तो देखता ही रह गया

इस फूल को देते देते रह गया था तुम्हे !

आँखों से तेरी यादे बहने लगी

दो चार अश्क की बुँदे पंखुडियो पर गिर गयी...

दिल की नमी और फूलो की नमी एक सी हो गयी !

लेकीन दिल को मेरे सुकून है,

इस बात पर एतबार है ,

के अबतक तो मेरी धडकनों ने

ये खबर पहुँचाई होगी तुम तक

तुम्हारे दिल को किया होगा

मेरी यादो से ...नम

और तुम्हारी आँखों को किया होगा मजबूर

दो चार अश्क ढालने के लिए ...!

साजिद शेख

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