Thursday, May 27, 2010


बारिश
कभी लगता है
मेरे खुबसूरत विशाल बंगले के बाल्कनी में से
बारिश की आहट सुनु !
बारिश आने पर एक गर्म चाय का प्याला लेकर
बारिश की रिमझिम गिरती बूंदों को
मेरे चेहरे और बदन पर नाचने की अनुमति दू !
एक लम्बी सांस लू
और अगले ही पल ...हर्षित हो जाऊ
बारिश बन जाऊ !
आहिस्ता आहिस्ता गर्म रजाई में
खुद को समर्पण कर दू
मिठीसी सी नींद के गोद में खो जाऊ !

आज मुझे याद है
ऐसी कई बारिशें गुजरी है
जब मै टूटे हुवे बर्तन में
अपने घर से टपकते हुवे
बारिश की बूंदों को जमा करता था
और रातभर जागा करता था
भीगी हुवी रजाई को बदन पर ओढ़े हुवे ...!

Written By-साजिद शेख (sajid1111@gmail.com )

No comments:

Post a Comment