कविता
ये कैसा शोर है
मेरे अन्दर जो मचल रहा है
तुफान की तरह ...
नाकाम सी कोशिश कर रहा है
जुबाँ पर आने कि...
ये कैसी चाहत है तेरी
जो मुझे सुबह से शाम तक
कर देती है विवश
और फिर मेरी आँखों तक आ जाती है मेरी साँसे
छटपटासा जाता हु मै ...
नस नस में तुम दौड़ने लगती हो
और शाम होते होते ये पूरा एहसास
एक बेहतरीन कविता के रूप में जन्म ले लेता है ...
लोगो के दिल से 'वाह' निकलती है
और मै फिर से उसी शोर के और गुमशुदा हो जाता हु
उसे नए तरीके से शब्दबद्ध करने के लिए ...
Written By-साजिद शेख (sajid1111@gmail.com )
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