बचपन
आज लैपटॉप है मेरे पास !
गाड़ी है ..इन्टरनेट पर दोस्त है..
पर वो बचपन की यादें अब भी सताती है !
कितने दिन हुवे ..
ना मिटटी की खुशबु सूंघी है
और ना ही बनाई है
इन शरारती नजरों ने
आसमान में किसी खरगोश की तस्वीर !
ना डंडो से उडाई है गिल्ली
दूर दूर नजरो के पार !
न डुबकी लगाई है
किसी पेड़ की शाख से गहराती नदी में
खुद ही फेंका हुवा सिक्का खोजने के लिए ...!
और ना ही उडाई है पतंग किसी और की छत से
रंगीले आसमान में !
आज मैंने छुट्टी मंजूर करा ली है दफ्तर से
आज मेरी स्कुल की बेंचपर जाकर बैठने वाला हूँ...
फिर एक बार मेरे बचपन को 'जीकर' आने वाला हूँ !
Written By-sajid shaikh
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