भंवर..
हर रोज भंवर सा हो जाता हूँ मै आकर्षित
तुम्हारे कोमल पत्तियों जैसे व्यक्तित्व में ...
तुम्हारी खुशबु मुझे पागल सा कर देती है ...
हर एक शाम होते होते
तुम अपनी पत्तियाँ हलके से मिटा देती हो
और मै ..मै तो कैद हो जाता हूँ तुम्हारी पत्तियों में ..
तुम तो अनजान सी रहती हो इस बात से
के मै तुम्हारी खुशबु को भी चुरा लेता हूँ ...
हो रहा होता हूँ मदहोश सा ...
खुद को खोते रहता हुं
तुम्हारे प्यार की धीमी खुशबू मे...
कर रहा होता हूँ खुद को सुगन्धित और बेकाबू ...!
जब सुबह की पहली किरण
तुम्हे चूमकर खुलवाती है
ये तुम्हारी मखमल सी पत्तियाँ ...
तब भी मै नहीं निकल पाता हूँ
तुम्हारे व्यक्तित्व के दायरे से ...!
फिर से करता रहता हूँ इंतज़ार शाम होने का
फिर से उन पत्तियों के मिटने का !
फिर से सुगन्धित और मदहोश होने का ...!
देखा ...तुम्हे पता भी नहीं चलता .. !!!
Written By-साजिद शेख (sajid1111@gmail.com )
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