Wednesday, June 16, 2010



अकेलापन...
अकेले होने का दर्द
बहोत ही होता है
कोई रौशनी ..कोई आशा नजर नहीं आती ..
विचार और भावनाओं की बढ़ जाती है कशमकश...
और धीरे धीरे व्यक्तित्व सिकुड़ने लग जाता है


हलके हलके फिर ये
दिल-ओ-दिमाग का तूफाँ
भर के आता है आँखों में
बादलों की तरह ...
और बरसने के लिए हो जाता है मजबूर ...
लेकिन एक बात है जरुर
ये अनोखा बहाव
दे जाता है मुझे एक नयी पहचान
और मेरी आँखों से छलके हुवे
मेरे आंसुओं के हर बूंद से
मेरे व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब
मुझसे मुस्कुराकर कहता है के
तुम अकेले नहीं हो ...
और मै बस सराभोर होकर
उन्हें प्यार से निहारता ही रह जाता हूँ ...

7 comments:

  1. Hello sir, mallika again.
    thanks for sharing your link.
    just wanted to tell you that; i really loved the way you jott down your feelings on the ppr i mean screen...

    hope to see your new creations soon...

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  2. अकेलेपन से ....
    विचार और भावनाओं की बढ़ जाती है कशमकश...
    और धीरे धीरे व्यक्तित्व सिकुड़ने लग जाता है

    बिलकुल,, बिलकुल ठीक लिखा आपने
    अकेलेपन की व्यथा को लफ़्ज़ों में खूब वर्णन किया है
    और चित्र
    जो नहीं कह दिया गया है
    वो भी कह रहा है ... वाह !!

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  3. प्रिय साजिद भी,
    आपकी रचनाएँ वैसे भी दमदार होती है | अकेलापन से लेकर कईं कविताये पढ़ चुका | वाकई देर सही, दुरस्त ! आजा ही ब्लॉग पर आया और फोलोवार्स बन गया | अस्सलामवालेकुम !

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  4. shukriya Pankaj jee ..thodi si koshish ki hai maine ..aur kuchh bhee nahi ...shukran

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